Thursday, July 16, 2020

भू आकृति विज्ञान 【 पार्ट-1 】

मूलभूत संकल्पना

1) W.D.थॉर्नबरी के अनुसार-
" वे भौतिक प्रक्रियाएं एवं नियम, जो संपूर्ण भूगर्भिक काल में संचालित होते रहे हैं, वह आज भी संचालित होते हैं। यद्यपि ऐसा अनिवार्य नहीं है कि उनकी तीव्रता व गहनता सदैव एक समान रही हो। "
यह आधुनिक भू-विज्ञान का सबसे मौलिक सिद्धांत है।
● इसे 'भू-गर्भकालिक शैल समरूपतावाद' भी कहा जाता है। 
● यह सिद्धांत सबसे पहले 1785 ईस्वी में हटन महोदय द्वारा, 1802 ईस्वी में प्लेफेयर ने पुनर्विवेचन तथा लायल ने इसे लोकप्रिय बनाया था।
● " वर्तमान को भूतकाल की कुंजी " -  हटन महोदय 
उन्होंने बताया कि " भूगर्भिक प्रक्रिया आज की भांति संपूर्ण भूगर्भिक काल में सम्मान गहनता के साथ संचालित होती रही है। "


2) " स्थलरूपों के विकास में भूगर्भिक संरचना एक प्रभावी नियंत्रक कारक है, जिसे स्थलरूपों द्वारा प्रतिबिंबित किया जाता है। "


3) " पृथ्वी की सतह में एक वृहत मात्रा में भू आकृतियों का संचय होता है, क्योंकि भू आकृतिक प्रक्रियाओं के संचालन की दर विभेदमूलक होती है। "


4)  " भू-आकृतिक प्रक्रिया द्वारा स्थलरूपों पर अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी जाती है और प्रत्येक भू-आकृतिक प्रक्रिया अपने स्थलरूपों के लाक्षणिक समूच्चय को स्वयं विकसित करती हैं। "


5) " क्योंकि विभिन्न अपरदनात्मक कारक भूसतह पर क्रियाएं करते हैं, इसलिए भू-स्थलरूपों का व्यवस्थित अनुक्रम निर्मित होता है। "


6) " भू-आकृति विज्ञान की जटिलताएं उसकी साधारणशीलता की अपेक्षा अधिक व्यापक है। "

7) " भू-स्थलाकृतियों का अंश मात्र नवजीवी युग टरशियरी से पुराना है, जबकि इनका अधिकांश अभिनूतन युग 【 प्लीस्टोसीन 】 से पुराना नहीं है। "


8) " प्लीस्टोसीन युग के दौरान घटित भूगर्भिक एवं जलवायुविक परिवर्तनों के विविध प्रभावों का पूर्ण मूल्यांकन यह बिना वर्तमान स्थलरूपों की सुनिश्चित व्याख्या करना असंभव है। "


9) " विभिन्न भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के विविधता पूर्ण महत्व की जानकारी के लिए विश्व जलवायु का मूल्यांकन अनिवार्य है।



10) " यद्यपि भू-आकृति विज्ञान प्राथमिक रूप से वर्तमान स्थलरूपों से संबद्ध है तथापि उसे अपनी अधिकतम उपयोगिता ऐतिहासिक विस्तार द्वारा प्राप्त हुई है। "


                     अंतर्जात तथा बहिर्जात बल



अंतर्जात शक्तियां -  पदार्थ एवं तापमान के मध्य होने वाली प्रतिक्रिया द्वारा भू-पृष्ठ के अंदर से अंतर्जात बलों को उत्पन्न किया जाता है।
इसमें भू संतुलन दो प्रकार से होता है - 
1. पटल विरूपण 
2. आकस्मिक

 1. पटल विरूपण -  
● इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है -
(क) महाद्वीपीय निर्माणकारी संचलन या महानिदेशक बल या इपीरोजेनिक -
● इसमें मंथन, नमन, वलन, भ्रंशन, संकुचन आदि क्रियाऐं शामिल होती हैं।
● ये शक्तियां पृथ्वी के घेरे के साथ-साथ कार्यरत होते हैं इसलिए इन्हें बहि: प्रकोष्ठीय है शक्तियां भी कहते हैं।
◆ इनकी दिशा भू-अभ्यंतर कि ओर अवतलन [ धसाव ] या भू-अभ्यंतर के विपरीत [ उन्नयन / उठाव ] भी हो सकती हैं।



■ भू-उन्नयन -
उदाहरण
◆ उन्नत बालुका तट, उन्नत तरंग घर्षित वैदिकाएं, समुद्री गुफाएं, समुद्री तल से उठे हुए जीवावशेषयुक्त संस्तर।
◆ दक्कन के पठार के उन्नयन का प्रमाण यह भी मिलता है कि सूरत के निकट समुद्र तल से ऊपर बेसाल्ट पर संकुचित रूप से चूना पत्थर की परत हैं।
काठियावाड़, उड़ीसा, नेल्लोर, चेन्नई, मदुरई, तिरुनेलवेली के तटीय क्षेत्रों में कई स्थानों पर वर्तमान समुद्र तल से 15 से 30 मीटर ऊंचे बालुका तट निर्मित हुए हैं।
◆ अनेक स्थान, जो कुछ सदियों पहले तक समुद्र तट पर स्थित थे, वर्तमान में कई मील दूर विस्थापित होकर अंतरस्थलीय क्षेत्र बन चुके हैं। जैसे - कोरिंगा ( गोदावरी मुहाने पर), कावेरिपट्टनम (कावेरी डेल्टा में), कोकेई (तिरुनेलवेली तट पर)
नोट : जो 2000 वर्ष पहले समृद्ध बंदरगाह थे।



■ भू अवतलन -
उदाहरण -
◆ सन् 1825 में आए भूकंप से कच्छ के रण का कुछ भाग जलमग्न हो गया।
◆ सुंदरवन एवं तिरुनेलवेली क्षेत्र में समुद्र तल से नीचे पीट तथा लिग्नाइट के भंडार भू-अवतलन का ही उदाहरण है।
◆ अंडमान निकोबार का मध्य स्थलीय भाग के समुंदर में डूब जाने के कारण अराकान तट से पृथक हुआ।
◆ मन्नार की खाड़ी, पाक जलडमरूमध्य भाग, चेन्नई के निकट स्थित पूर्ववर्ती नगर महाबलीपुरम का भी कुछ भाग समुद्र में डूबा है।
◆ एक जलमग्न वन तमिलनाडु के तिरुनेलवेली तट पर भी प्राप्त हुआ है।


(ख) पर्वत निर्माणकारी संचलन ( ओरोजेनिक ) - 
● इस प्रकार का संचालन पृथ्वी की सतह पर पटल विरूपण के रूप में स्पर्श रेखिय ढंग से कार्य करता है।
● तनाव के द्वारा दरारें पैदा होती हैं, क्योंकि इस प्रकार का बल बिंदु से विपरीत दो दिशाओं में कार्य करता है।
● दबाव या संपीडन से वलन पैदा होते हैं।
● सामान्यतः स्थलखंडों को ऊपर उठाने वाले पटल विरूपण बल तथा उन्हें नीचे रहने वालों से अधिक शक्तिशाली होते हैं।



2. आकस्मिक संचलन -
● यह दो प्रकार के होते हैं - भूकंप तथा ज्वालामुखी

भूकंप -
● यह उस समय घटित होता है जब भूगर्भिक चट्टानों में संचित अतिरिक्त दबाव कमजोर क्षेत्रों से होकर गतिज ऊर्जा तरंगों के रूप में भू-सतह पर पहुंचते हैं।
● इन ऊर्जा तरंगों की गति से पृथ्वी की सतह पर कंपन होता है, जिसे भूकंप कहा जाता है।
● इस प्रकार के संतुलन के परिणामस्वरूप उन्नयन या अवतलन दोनों हो सकते हैं।
● उदाहरण -
√ सन् 1822 में, चिली में आया भूकंप, जिससे तटीय क्षेत्रों में 1 मीटर ऊंचाई तक उन्नयन हुआ।
√ सन् 1855  में, न्यूजीलैंड में, कुछ क्षेत्र 3 मीटर तक ऊंचे उठ गए।
√ सन् 1891 में, जापान में, कुछ भू-भाग 6 मीटर तक नीचे धंसे



◆ भूकंप के कारण धरातलीय समोच्च रेखाएं एवं नदी जल प्रवाह मार्गों में भी परिवर्तन देखने को मिलता है।

★ ज्वालामुखी -
ज्वालामुखी का निर्माण तब होता है, जब पृथ्वी के आंतरिक भाग में से भू-पृष्ठीय दरारों एवं छिद्रों के माध्यम से द्रवीय चट्टानी पदार्थ ( मैग्मा ) बाहर निकलता है।
● इस द्रवीय पदार्थ के साथ  जलवाष्प, गैसे 【 कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन क्लोराइड आदि 】 तथा विखंडित ज्वालामुखी पदार्थ बाहर आते है।

■ ज्वालामुखी के प्रकार -
1.शंक्वाकार अथवा केंद्रीय ज्वालामुखी -
जब ज्वालामुखी उदगार से निकलने वाला लावा  ठंडा होकर ज्वालामुखी छिद्र के चारों ओर एक शंकुनुमा आकृति में जमा हो जाता हैं तब, इस शंक्वाकार पर्वत की आकृति का जन्म होता है।
◆ जैसे -जापान का फ्यूजीयामा, विसुवियस (इटली) ।
◆ इस प्रकार के ज्वालामुखी का मैग्मा लचीला, अम्लीय तथा सिलिका युक्त होता है।

2. पठारी ज्वालामुखी - 
◆ इस प्रकार के ज्वालामुखी का मैग्मा कम लचीला, कम अम्लीय व कम सिलिका युक्त होता है।
जिसके उदगार के बाद शांत होने पर पठार सदृश्य आकृति का जन्म होता है।
◆ जैसे - हवाई दीप का मोनोलोआ ज्वालामुखी ।

3. दरारी ज्वालामुखी -
कभी-कभी गाढ़ा मैग्मा दरारों एवं भ्रंशों के माध्यम से सतह पर आ जाता है एक समय अंतराल के बाद यह मैग्मा एक विस्तृत भू-भाग में फैल जाता है, जिसके फलस्वरूप एक प्रकार तरंगित एवं सपाट भूभाग का निर्माण होता है।
◆ जैसे -दक्कन ट्रैप।

4. वृहत ज्वालामुखी कुंड या काल्डेरा -
मेग्मा के उदगार रुक जाने पर ज्वालामुखी कुछ समय बाद एक झील या कुंड का रूप ले लेता है, जिसे काल्डेरा कहते हैं।

जैसे -लूनर झील ( महाराष्ट्र ), क्राकाटाओ ( इंडोनेशिया )।


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