Sunday, June 7, 2020

ज्वार भाटा ( TIDE AND EBB )

● महासागरीय जल कि वह दशा जिसमें सागर का तल सामान्यतया दिन में दो बार ऊंचा उठता है वह नीचे गिरता है इसे ज्वार भाटा कहते हैं।
● ज्वार भाटा उन कुछ महत्वपूर्ण परिघटनाओं से संबंधित है जिनका अध्ययन मानव ने प्रारंभिक समय से ही किया है।
● प्राचीन यूनानी दार्शनिको द्वारा इस संबंध में कुछ सटीक व्याख्या प्रस्तुत की है।
पाइथस नामक यूनानी विद्वान के द्वारा ज्वार भाटा की उत्पत्ति के संदर्भ में प्रारंभिक विचार प्रस्तुत किया गया। इन्होंने चंद्रमा के साथ ज्वारीय प्रक्रिया को सम्बंधित करने का प्रयास किया।
हिकेटियस, हेरोडोटस, एनेक्जीमेण्डर व पोसिडोनियस नामक महान यूनानी दार्शनिक दार्शनिकों ने भी ज्वार भाटा की उत्पत्ति को समझाने का प्रयास किया।
● उत्तर पुनर्जागरण काल में गैलीलियो ने ज्वार भाटा की उत्पत्ति का प्रथम वैज्ञानिक सिद्धांत प्रस्तुत किया परंतु इनके अनुसार इस परिघटना के लिए पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर परिक्रमा को उत्तरदायी माना।
कैपलर और कोपरनिक्स जैसे महान खगोलीय वैज्ञानिकों ने ज्वार भाटा को समझाने का प्रयास किया। अंततः 1687 में न्यूटन द्वारा अपनी पुस्तक "प्रिंसिपिया मैथमैटिका" के द्वितीय संस्करण में ज्वार भाटा की उत्पत्ति का 'संतुलन सिद्धांत' प्रस्तुत कर दिया गया। जो कि सटीक व्याख्या प्रस्तुत करता है ।

पृथ्वी के चारों ओर सतह पर विद्यमान सागरीय जल में उच्च तल की दशा व निम्न स्तर की दशा के लिए चंद्रमा का आकर्षण बल प्रमुखतया तथा सूर्य का आंशिक आकर्षण बल उत्तरदायी होता है।
इसके साथ केंद्र अपसारी बल भी ज्वार भाटा की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी माना जाता है।

ZENITH - चंद्रमा के सम्मुख पृथ्वी की सतह का भाग।
NADIR -  जेनिथ का प्रति धुव्रस्थ पृथ्वी की सतह का भाग यानी पृथ्वी का विपरीत सतह का भाग।
ज्वारीय केंद्र - पृथ्वी पर ज्वारीय केंद्र पूर्व से पश्चिम संचालित होता है।

पृथ्वी का वह भाग जो चंद्रमा के सम्मुख आता जाता है वहां सागर का तल सामान्य की अपेक्षा उच्च हो जाता है और जब इसके प्रभाव से यह हटता है तो वहां निम्न तल की प्राप्ति होती है इस दशा को क्रमशः उच्च ज्वार तल (ज्वार ) तथा निम्न ज्वार तल ( भाटा ) कहा जाता है।

जैनीथ की दशा में उच्च ज्वार तल के बाद पुनः उच्च ज्वार तल की दशा जैनीथ के प्रति धुव्रस्थ भाग में पहुंचने पर (नादिर) प्राप्त होती है इस प्रकार किसी स्थान पर 1 दिन में दो बार ज्वार दो बार भाटा आता है।

पृथ्वी की बाहरी सतह पर विद्यमान सागरीय जल में चंद्रमा का आकर्षण बल अधिक प्रभावी होता है क्योंकि न्यूटन के सिद्धांत के अनुसार किसी पिंड का आकर्षण प्रभाव उसकी दूरी के वर्ग के विलोमानुपाती होता है।



● चंद्रमा की आकर्षण बल के कारण सामान्यतया किसी स्थान पर ज्वार जिस समय आता है उसके 12 घंटे 26 मिनट बाद दोबारा उसी स्थान पर ज्वार प्राप्त होता है।
और अपकेंद्रीय बल के कारण किसी स्थान पर ज्वार के 6 घंटे 13 मिनट बाद निम्न ज्वार तल या भाटा कि प्राप्ति होती है।
● इस प्रकार किसी स्थान पर प्रत्येक ज्वार व भाटा और भाटा व ज्वार के मध्य 6 घंटे 13 मिनट का समयान्तराल होता है।



ज्वार भाटा के प्रकार -

● सामान्य ज्वार के प्रकार सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा की स्थितियों के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं-

1. दीर्घ ज्वार 

सिजिगी- चंद्रमा में पृथ्वी की परिक्रमणशीलता के दौरान जब सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं तो यह स्थिति या दशा सिजिगी कहलाती है।

◆ इस दशा की दो रूपों में प्राप्ति होती है -

१. यूति
जब इस परिक्रमणशील स्थिति में चंद्रमा व सूर्य पृथ्वी के एक ओर हो जाये अथवा पृथ्वी व सूर्य के मध्य चंद्रमा आ जाए तो इसे युति कहा जाता है ।
● यह दशा सामान्यतः अमावस्या को प्राप्त होती हैं ।
●इस दशा में सूर्य व चंद्रमा का सम्मिलित आकर्षण बल सामान्य की अपेक्षा उच्च ज्वार उत्पन्न करता है ।

२. वियूति
जब इस परिक्रमणशील दशा में चंद्रमा व सूर्य के मध्य पृथ्वी की स्थिति हो तो इसे वियूति की दशा कहते हैं ।
● दीर्घ ज्वार की दशा में सामान्य ज्वार के अपेक्षा 20% उच्च ज्वार आता है और 20% सामान्य निम्न ज्वार तल ( भाटा )की अपेक्षा निम्नतम ज्वार तल प्राप्त होता है। अर्थात् उच्च ज्वार व निम्न ज्वार तल के मध्य सर्वाधिक अंतर दीर्घ ज्वार तल के समय पाया जाता हैं।
● यह दशा सामान्यतया पूर्णिमा ( FULLMOON ) को प्राप्त होती है।



2. लघु ज्वार ( NEAP TIDE )-

● जब पृथ्वी सूर्य चंद्रमा परिक्रमणशीलता की दशा में समकोणिक स्थिति प्राप्त कर लेते हैं तो सामान्य ज्वार तल की अपेक्षा ज्वार तल नीचे रहता है तथा निम्न ज्वार तल सामान्य की अपेक्षा निम्न नहीं हो पाते या ऊंचा रह जाता है अर्थात लघु ज्वार में उच्च ज्वार तल व निम्न ज्वार तल में अंतर निम्नतम होता है।
● यह दशा सप्तमी या अष्टमी को घटित होती है।
● उच्च ज्वार तत्व निम्न ज्वार तल में निम्नतम अंतर कम होता है।

अपभू ज्वार(APOGEE TIDE)-  चंद्रमा और पृथ्वी के मध्य अधिकतम दूरी होने पर चंद्रमा का आकर्षण सागरतल पर अपेक्षाकृत कम पड़ता है जिससे सामान्य ज्वार की अपेक्षा 15 से 20% कमजोर ज्वार आता है।

उपभू/पेरिजियन टाइड- चंद्रमा पृथ्वी के मध्य न्यूनतम दूरी होने पर चंद्रमा का आकर्षण बल अपेक्षाकृत अधिक होता है इससे सामान्य की अपेक्षा ऊंचा ज्वार आता है।


ज्वार भाटा उत्पत्ति के सिद्धांत-

पाइथस नामक यूनानी विद्वान द्वारा सर्वप्रथम ज्वार भाटा उत्पत्ति का सिद्धांत प्रस्तुत किया गया।
जो भूमध्यसागरीय ज्वार के आधार पर दिया गया।
आधुनिक सिद्धांतों में इसके संदर्भ में तीन प्रमुख सिद्धांत प्रचलित हैं। जो निम्न है -

■ संतुलन का सिद्धांत -  

●इक्वीलीब्रीयम थ्योरी-न्यूटन  1687 में,
 न्यूटन द्वारा 'प्रिंसिपियामैथमैटिका' में।
● यह सिद्धांत ब्रह्मांड में आकर्षण शक्तियों द्वारा स्थापित संतुलन की व्यवस्था के आधार पर प्रस्तुत किया गया।
● इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी के सबसे समीपस्थ आकाशीय पिंड चंद्रमा के आकर्षण बल का सागरीय जल पर स्पष्ट प्रभाव दृश्य होता है इस आधार पर सागरतल का ऊपर खींचता है जिससे ज्वार की दशा उत्पन्न होती है। जब यह जल पुनः सागर में निम्नतम बनाते हुए लौटता है तो यह भाटा की दशा होती है।

● इस स्थान के प्रतिधुव्रस्थ भाग पर उपर्युक्त प्रक्रिया से क्रमशः भाटा व ज्वार की उत्पत्ति होती है।

प्रगामी तरंग सिद्धांत -

● 1833 में वेवेल ने यह सिद्धांत दिया।
● 1842 में वेवेल ने इस सिद्धांत को 'केनाल सिद्धांत' के रूप में संशोधित किया अर्थात 'नहर सिद्धांत' के रूप में ।
● वेवेल के अनुसार दक्षिणी गोलार्द्ध के खुले महासागरों में चंद्रमा के आकर्षण बल के परिणामतः पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर प्राथमिक तरंगे उत्पन्न होती हैं।
● यह तरंगे महाद्वीपों के पूर्वी भाग पर टकराकर तट कि आकृति का अनुसरण करते हुए दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर प्रगामी स्वभाव प्राप्त कर लेती है। इन तरंगों को द्वितीयक तरंगे कहा जाता है।
● इन द्वितीयक तरंगों से स्थानिक आंतरिक सागर, सीमांत सागर तथा संकिर्ण खाडियों के स्वरूप के आधार पर भिन्न-भिन्न ऊचाई की  "केनाल वेव" उत्पन्न होती हैं इन्हें वेवेल ने तृतीयक तरंगे कहा।
● ज्वार की ऊंचाई "बरनौली प्रमेय" के अनुसार निर्धारित होती है।
● यह सिद्धांत मूलतः इस तथ्य का अनुसरण करता है कि ज्वारीय दशा की प्रारंभिक उत्पति दक्षिणी गोलार्द्ध के सागर में होती है।

■  स्थैतिक तरंग सिद्धांत -

● 19वीं शताब्दी के अंत में विलियम हैरिस द्वारा यह सिद्धांत दिया गया।
● इस सिद्धांत के अनुसार ज्वार भाटा की क्रिया प्रत्येक महासागर व आंतरिक सागर में भिन्न-भिन्न प्रकार से पृथक रूप में उत्पन्न होती है।
● प्रत्येक सागर के जल कल का एक नोडल बिंदु होता है जिसके सापेक्ष चंद्रमा के आकर्षण बल के कारण तट के एक सिरे पर ज्वार व दूसरे सिरे पर भाटा उत्पन्न होता है।
● तरंग के स्वभाव की भांति दोलन करते हुए भाटा वाले स्थान पर ज्वार तथा ज्वार वाले स्थान पर भाटा की दशा बनती है।
● संसार का सबसे ऊंचा ज्वार उत्तरी पूर्वी कनाडा में फंडी की खाड़ी में आता है जहां 17 से 20 मीटर तक उच्च ज्वार तल की दशा बनती है।

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