■ प्रस्तावना -
● हाल ही में, बीजिंग में “बेल्ट एवं रोड फोरम सम्मेलन” (BARF) का आयोजन किया गया जिसमें विश्व के विभिन्न देंशो ने भाग लिया|
● इसमें अमेरिका एवं जापान सहित अनेक एशियाई देशों ने भी हिस्सा लिया|
● इस सम्मेलन की खास बात यह रही कि भारत ने इसमें भाग नहीं लिया।
● इसका कारण था, ‘वन बेल्ट, वन रोड’ (ओ.बी.ओ.आर.)के तहत बनने वाला पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारा (CPEC), जो पाक-अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़रता है।
● भारत ने इसे अपनी संप्रभुता का हनन और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया है।
■ वन बेल्ट, वन रोड परियोजना-
यह परियोजना 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा शुरू की गई थी।
● इसे ‘सिल्क रोड इकॉनमिक बेल्ट’ और 21वीं सदी के समुद्री सिल्क रोड (वन बेल्ट, वन रोड) के रूप में भी जाना जाता है।
● यह एक विकास रणनीति है जो कनेक्टिविटी पर केंद्रित है| इसके माध्यम से सड़कों, रेल, बंदरगाह, पाइपलाइनों और अन्य बुनियादी सुविधाओं को ज़मीन और समुद्र होते हुये एशिया, यूरोप और अफ्रीका से जोड़ने का विचार है।
● हालाँकि, इसका एक उद्देश्य यह भी है कि इसके द्वारा चीन अपना वैश्विक स्तर पर प्रभुत्व बनाना चाहता है।
■ इन गलियारों से जाल बिछाएगा चीन-
● न्यू सिल्क रोड के नाम से जानी जाने वाली 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना के तहत छह आर्थिक गलियारे बन रहे हैं।
● चीन इन आर्थिक गलियारों के जरिए जमीनी और समुद्री परिवहन का जाल बिछा रहा है।
● प्रस्तावित गलियारे-
1.चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
2. न्यू यूराशियन लैंड ब्रिज
3. चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा
4. चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा
5. बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा
6. चीन-इंडोचाइना-प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा
■ प्राचीन रेशम मार्ग क्या था?
● प्राचीनकाल और मध्यकाल में ऐतिहासिक व्यापारिक-सांस्कृतिक मार्गों का एक समूह था।
● जिसके माध्यम से एशिया, यूरोप और अफ्रीका जुड़े हुए थे।
● इसका सबसे जाना-माना हिस्सा उत्तरी रेशम मार्ग है जो चीन से होकर पश्चिम की ओर पहले मध्य एशिया में और फिर यूरोप में जाता था और जिससे निकलती एक शाखा भारत की ओर जाती थी।
● रेशम मार्ग का जमीनी हिस्सा ६,५०० किमी लम्बा था और इसका नाम चीन के रेशम के नाम पर पड़ा जिसका व्यापार इस मार्ग की मुख्य विशेषता थी।
● इसके माध्यम मध्य एशिया, यूरोप, भारत और ईरान में चीन के हान राजवंश काल में पहुँचना शुरू हुआ।
● सिल्क रुट का चीन, भारत, मिस्र, ईरान, अरब और प्राचीन रोम की महान सभ्यताओं के विकास पर गहरा असर पड़ा।
● इस मार्ग के द्वारा न केवल व्यापार बल्कि ज्ञान, धर्म, संस्कृति, भाषाएँ, विचारधाराएँ, भिक्षु, तीर्थयात्री, सैनिक, घूमन्तू जातियाँ, और बीमारियाँ भी फैलीं।
● व्यापारिक नज़रिए से चीन रेशम, चाय और चीनी मिटटी के बर्तन भेजता था, भारत मसाले, हाथीदांत, कपड़े, काली मिर्च और कीमती पत्थर भेजता था और रोम से सोना, चांदी, शीशे की वस्तुएँ, शराब, कालीन और गहने आते थे।
■ क्या है सिल्क रूट का इतिहास?
● वास्तव में सिल्क रोड या सिल्क रूट वह पुराना मार्ग है जो सदियों पहले व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
● यह रास्ता सदियों तक व्यापार का मुख्य मार्ग रहा और इसी रास्ते के जरिए तमाम संस्कृतियां भी एक-दूसरे के संपर्क में आयीं। इस रूट के जरिए पूर्व में कोरिया और जापान का संपर्क भूमध्य सागर के दूसरी तरफ के देशों से हुआ।
● हालांकि आधुनिक युग में सिल्क रूट का अभिप्राय चीन में हान वंश के राज के समय की सड़क से है, जिसके जरिए रेशम और घोड़ों का व्यापार होता था।
● चीनी अपने व्यापार को लेकर शुरू से ही काफी संजीदा रहे हैं और इसी को ध्यान में रखते हुए चीन की महान दीवार का भी निर्माण किया गया था, ताकि व्यापार आसानी से हो और बाहरी आक्रमणकारी व्यापार को नुकसान न पहुंचा सकें।
● 5वीं से 8वीं सदी तक चीनी, अरबी, तुर्की, भारतीय, पारसी, सोमालियाई, रोमन, सीरिया और अरमेनियाई आदि व्यापारियों ने इस सिल्क रूट का काफी इस्तेमाल किया।
● साल 2014 में यूनेस्को ने इसी पुराने सिल्क रूट के एक हिस्से को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता भी दी।
● क्या चाहता है चीन?
● वन बेल्ट, वन रोड के माध्यम से एशिया के साथ-साथ विश्व पर भी अपना अधिकार कायम करना।
● दक्षिणी एशिया एवं हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को कम करना।
● इस परियोजना के द्वारा चीन सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय समझोंते करके, उन्हे आर्थिक सहायता एवं ऋण उपलब्ध कराकर उन पर मनमानी शर्तें थोपना चाहता है जिसके फलस्वरूप वह सदस्य देशों के बाज़ारों में अपना प्रभुत्व बना सके।
● असल में पिछले काफी सालों से चीन के पास स्टील, सीमेंट, निर्माण साधन इत्यादि की सामग्री का आधिक्य हो गया है।
● अत: चीन इस परियोजना के माध्यम से इस सामग्री को भी खपाना चाहता है।
■ भारत इस सम्मेलन से अलग-थलग क्यों रहा?
● विभिन्न राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भारत को इस सम्मेलन में शामिल होना चाहिये था ताकि वह इस परियोजना का लाभ उठा सके और चीन के साथ संबंधों को और मज़बूती प्रदान की जा सके।
● वस्तुतः उनकी इस दलील के पीछे कुछ ठोस कारण भी हैं, जैसे – उनका मानना है कि जापान एवं वियतनाम जैसे देशों ने भी इसमें भाग लिया है, जबकि इन देशो के भी चीन के साथ सीमा विवाद काफी लम्बे समय से अनसुलझा है।
● हालाँकि, इस संदर्भ में भारत का यह कहना है कि इस परियोजना के माध्यम से चीन द्वारा उसकी क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय संप्रभुता का हनन किया जा रहा है।
● साथ ही साथ चीन हमारे बाज़ारों पर कब्ज़ा करना चाहता है।
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