“आज दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा भारत ने हासिल तो कर लिया है लेकिन अब भी एक तबका ऐसा है जो हाशिये पर है। इस तबके के अंतर्गत वे जनजातियाँ आती हैं जो सुदूरवर्ती इलाकों में जीवन यापन कर रही हैं और कई समस्याओं को झेल रही हैं।”
सेंटिनलीज जनजाति
● यह जनजाति एक प्रतिबंधित उत्तरी सेंटिनल द्वीप पर रहने वाली एक नेग्रिटो जनजाति है।
● 2011 के जनगणना आँकड़ों के अनुसार द्वीप पर इनकी संख्या 15 के आस-पास थी।
● जहाँ एक तरफ अंडमान द्वीप में चार नेग्रिटो जनजातियों- ग्रेट अंडमानी, ओंगे/ओंज, जारवा तथा सेंटिनलीज का निवास है तो वहीं दूसरी तरफ निकोबार में दो मंगोलॉइड जनजातियाँ मसलन- निकोबारी और शोम्पेन का निवास है।
● सेंटिनलीज के साथ ही अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की अन्य जनजातियाँ- ग्रेट अंडमानी, ओंगे, जारवा तथा शोम्पेन भारत की विशेष रूप से अति संवेदनशील जनजातीय समूहों यानी Particularly Vulnerable Tribal Groups (PVTGs) में शामिल हैं।
● कुछ समय पहले अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की सेंटिनलीज जनजाति व्यापक चर्चा का विषय बनी हुई थी।
● माजरा कुछ यूँ था कि इस जनजाति के कुछ सदस्यों ने एक अमेरिकी पर्यटक की हत्या कर दी थी।
● गौरतलब है कि बाहरी दुनिया तथा बाहरी हस्तक्षेप के प्रति इनका रवैया अमूमन शत्रुतापूर्ण ही रहा है।
● इस प्रकार का वाकया पहली बार देखने को नहीं मिला है। जब-जब बाहरी लोगों ने इन जनजातियों के साथ संपर्क साधने की कोशिश की तब-तब इन्होंने हिंसक तेवर अपनाए।
● इनके इसे रवैये के कारण देश की आज़ादी से पहले ब्रिटिश शासन ने इन्हें Criminal Tribes Act,1871 के तहत क्रिमिनल जनजाति तक का दर्जा दे दिया था और इनके बच्चों को 6 वर्ष की आयु के पश्चात् इनके माता-पिता से दूर कर दिया जाता था।
● हालाँकि आज़ादी के बाद भारत सरकार ने इनके क्रिमिनल जनजातियों के दर्जे को बदलकर गैर-अधिसूचित जनजातियाँ (De-notified Tribes) कर दिया।
● ये जनजातियाँ मसलन डी-नोटिफाईड और नोमेडिक/सेमि-नोमेडिक, सरल शब्दों में कहें तो घुमंतू जनजातियाँ आज भी कई समस्याओं का सामना कर रही हैं।
● समाज के अन्य सदस्यों के बीच इनकी दयनीय स्थिति किसी से छुपी नहीं है।
● ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या कारण है कि ये जनजातियाँ बाहरी लोगों से अपना संपर्क नहीं साध पाती हैं? क्यों ये आधुनिक दुनिया से अलगाव महसूस करती हैं?
● सवाल यह भी है कि ये जनजातियाँ किन-किन समस्याओं का सामना कर रही हैं? इस लेख में इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की गई है।
● यहीं पर एक और सवाल मन में कौंधता है कि जनजाति किसे कहते हैं? इसकी परिभाषा क्या है? इस लेख के माध्यम से हम इन्हीं कुछ प्रश्नों का जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे
■ भारत में जनजातियाँ
● जनजातियाँ वह मानव समुदाय हैं जो एक अलग निश्चित भू-भाग में निवास करती हैं और जिनकी एक अलग संस्कृति, अलग रीति-रिवाज, अलग भाषा होती है।
● सरल अर्थों में कहें तो जनजातियों का अपना एक वंशज, पूर्वज तथा सामान्य से देवी-देवता होते हैं। ये अमूमन प्रकृति पूजक होते हैं।
● भारतीय संविधान में जहाँ इन्हें 'अनुसूचित जनजाति' कहा गया है तो दूसरी ओर, इन्हें अन्य कई नामों से भी जाना जाता है-
मसलन- आदिवासी, आदिम-जाति, वनवासी, प्रागैतिहासिक, असभ्य जाति, असाक्षर, निरक्षर तथा कबीलाई समूह इत्यादि।
● हालाँकि भारतीय जनजातियों का मूल स्रोत कभी देश के संपूर्ण भू-भाग पर फैली प्रोटो ऑस्ट्रेलॉयड तथा मंगोल जैसी प्रजातियों को माना जाता है।
● इनका एक अन्य स्रोत नेग्रिटो प्रजाति भी है जिसके वंशज अण्डमान- निकोबार द्वीपसमूह में अभी भी मौजूद हैं।
● गौरतलब है कि अनेकता में एकता ही भारतीय संस्कृति की पहचान है और इसी के मूल में निश्चित रूप से भारत के विभिन्न प्रदेशों में स्थित जनजातियाँ हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में रहते हुए अपनी संस्कृति के ज़रिये भारतीय संस्कृति को एक अनोखी पहचान देती हैं।
● वर्तमान में भी भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तथा पूर्व से लेकर पश्चिम तक जनजातियों के साथ-साथ संस्कृति का विविधीकरण देखने को मिलता है।
● भारत भर में जनजातियों की स्थिति का जायजा उनके भौगोलिक वितरण को समझकर आसानी से लिया जा सकता है।
■ जनजातियों का भौगोलिक वितरण
● भौगोलिक आधार पर भारत की जनजातियों को विभिन्न भागों में विभाजित किया गया है जैसे-उत्तर तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, दक्षिण क्षेत्र और द्वीपीय क्षेत्र।
● उत्तर तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र के अंतर्गत हिमालय के तराई क्षेत्र, उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र सम्मिलित किये जाते हैं। कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड तथा पूर्वोत्तर के सभी राज्य इस क्षेत्र में आते हैं।
● इन क्षेत्रों में बकरवाल, गुर्जर, थारू, बुक्सा, राजी, जौनसारी, शौका, भोटिया, गद्दी, किन्नौरी, गारो, ख़ासी, जयंतिया इत्यादि जनजातियाँ निवास करती हैं।
● अगर बात करें मध्य क्षेत्र की तो इसमें प्रायद्वीपीय भारत के पठारी तथा पहाड़ी क्षेत्र शामिल हैं।
● मध्य प्रदेश, दक्षिण राजस्थान, आंध्र प्रदेश, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, ओडिशा आदि राज्य इस क्षेत्र में आते हैं जहाँ भील, गोंड, रेड्डी, संथाल, हो, मुंडा, कोरवा, उरांव, कोल, बंजारा, मीणा, कोली आदि जनजातियाँ रहती हैं।
● दक्षिणी क्षेत्र के अंतर्गत कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल राज्य आते हैं जहाँ टोडा, कोरमा, गोंड, भील, कडार, इरुला आदि जनजातियाँ बसी हुई हैं।
● द्वीपीय क्षेत्र में अमूमन अंडमान एवं निकोबार की जनजातियाँ आती हैं।
● मसलन- सेंटिनलीज, ओंग, जारवा, शोम्पेन इत्यादि।
■ जनजातियों के उत्थान के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदम
● संविधान के पन्नों को देखें तो जहाँ एक तरफ अनुसूची 5 में अनुसूचित क्षेत्र तथा अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण का प्रावधान है तो वहीं दूसरी तरफ, अनुसूची 6 में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन का उपबंध है।
● इसके अलावा अनुच्छेद 17 समाज में किसी भी तरह की अस्पृश्यता का निषेध करता है तो नीति निदेशक तत्त्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 46 के तहत राज्य को यह आदेश दिया गया है कि वह अनुसूचित जाति/जनजाति तथा अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा और उनके अर्थ संबंधी हितों की रक्षा करे।
● अनुसूचित जनजातियों के हितों की अधिक प्रभावी तरीके से रक्षा हो, इसके लिये 2003 में 89वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के द्वारा पृथक राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना भी की गई।
● संविधान में जनजातियों के राजनीतिक हितों की भी रक्षा की गई है। उनकी संख्या के अनुपात में राज्यों की विधानसभाओं तथा पंचायतों में स्थान सुरक्षित रखे गए हैं।
● संवैधानिक प्रावधानों से इतर भी कुछ कार्य ऐसे हैं जिन्हें सरकार जनजातियों के हितों को अपने स्तर पर भी देखती है। इसमें शामिल हैं- सरकारी सहायता अनुदान, अनाज बैंकों की सुविधा, आर्थिक उन्नति हेतु प्रयास, सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व हेतु उचित शिक्षा व्यवस्था मसलन- छात्रावासों का निर्माण और छात्रवृत्ति की उपलब्धता तथा सांस्कृतिक सुरक्षा मुहैया कराना इत्यादि।
● इसी के साथ केंद्र तथा राज्यों में जनजातियों के कल्याण हेतु अलग-अलग विभागों की स्थापना की गई है।
● जनजातीय सलाहकार परिषद इसका एक अच्छा उदाहरण है।
इन्हीं पहलों का परिणाम है कि जनजातियों की साक्षरता दर जो 1961 में लगभग 10.3% थी वह 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 66.1% तक बढ़ गई।
● सरकारी नौकरी प्राप्त करने की सुविधा देने की दृष्टि से अनुसूचित जातियों के सदस्यों की आयु सीमा तथा उनके योग्यता मानदंड में भी विशेष छूट की व्यवस्था की गई है।
● हालिया सरकार ने भी जनजातियों के उत्थान की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं। मसलन अनुसूचित जनजाति (एसटी) के छात्रों के लिये एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय योजना शुरू हुई है।
● इसका उद्देश्य दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले विद्यार्थियों को मध्यम और उच्च स्तरीय शिक्षा प्रदान करना है।
● वहीं अनुसूचित जनजाति कन्या शिक्षा योजना निम्न साक्षरता वाले जिलों में अनुसूचित जनजाति की लड़कियों के लिये लाभकारी सिद्ध होगी।
● इन सराहनीय कदमों के बावजूद देश भर में जनजातीय विकास को और मज़बूत करने की दरकार है।
● यह सही है कि जनजातियों का एक खास तबका समाज की मुख्यधारा में आने से कतराता है, लेकिन ऐसे में इनका समुचित विकास और संरक्षण भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
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